सोमवार, 28 मई 2012

अश्रुमाल















नाथ तुम्हारी क्षुद्र सेविका लाई यह रत्नों का हार ,
तुम पर वही चढ़ाती हूँ मैं करना मेरे प्रिय स्वीकार !

मेरा मुझ पर नाथ रहा क्या जो कुछ है वह तेरा है ,
मुझे निराशा अरु आशा की लहरों ने प्रभु घेरा है !

तुम लक्ष्मी माँ के प्रिय पति हो रत्न भेंट हों कैसे नाथ ,
रत्नों की जब खान स्वयं माँ होवें प्रियतम तेरे साथ !

बस हैं यह आँसू ही भगवन्  जिनका है यह हार सजा ,
करती  भेंट करो स्वीकृत प्रभु यद्यपि तुम्हें यह रहा लजा !

किरण

8 टिप्‍पणियां:

  1. "बस है यह आँसू ही भगवान जिनका है यह हार सजा ,
    करती भेट करो स्वीकृत प्रभु यद्यपि तुम्ही रहा लजाय |"
    बहुत भाव पूर्ण और सार्थक रचना |
    आशा

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  2. आदरणीय माँ की रचनाओं को पढ़ना हमारे लिए एक विशेष उपलब्धि है , श्रेष्ठता को आकलन की ज़रूरत ही क्या , और मैं ऐसी ध्रिष्ट्ता करूँ क्यूँ !

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  3. bhakti ras me sarabore karti ek utkrist rachna..sadar badhayee ke sath

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  4. खूबसूरत रचना ....माँ की सुन्दर कृति

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  5. कल 04/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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