शुक्रवार, 11 मई 2012

माँ की याद


आज आपको अपनी माँ की एक दुर्लभ रचना पढ़वाने जा रही हूँ जिसका रचना काल सन् १९५५-५६ का रहा होगा ! उन दिनों मातृ दिवस मनाने का चलन नहीं था ! माँ को किसी दिवस विशेष पर याद किया जाना चाहिये ऐसी प्रथा भी भारतीय समाज में तब प्रचलित नहीं थी ! लेकिन माँ के प्रति बेटी के प्रेम और श्रद्धा की यह शाश्वत धारा अनादि काल से प्रवाहित हो रही है और शायद जब तक सृष्टि का क्रम चलेगा यह प्रवाहित होती रहेगी ! लीजिए आज प्रस्तुत है एक ऐसी रचना जिसमें मेरी माँ ने अपनी माँ को व्याकुल होकर याद किया है ! मेरी नानीजी का देहांत सन् १९५५ में हुआ था !

माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं ! 
जन्मदायिनी जननी तूने उकता कर क्यों छोड़ी ममता ,
अरी कौन सी परवशता में पड़ यों जग से तोड़ी ममता ,
माँ बतला दे एक बार अब कैसे जीवन में विचरूँ मैं !
माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !
पल भर मेरी इन आँखों में आँसू तुझे न भाते थे माँ ,
उन आँखों में उमड़ सरोवर पल क्षण तुझे बुलाते हैं माँ ,
हृदय बना पाषाण छिपी जा कैसे तेरी खोज करूँ मैं !
माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !
हमें बिलखता छोड़ तुझे क्या अमरावति का सुख मन भाया ,
जो पीड़ा से अपने ही अंशों के अंतर को छलकाया ,
बिलख रहे ये प्राण इन्हें क्या कह समझा कर कष्ट हरूँ मैं !
माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !
भुला न पाती मैं तेरे अंतर का स्नेह सरोवर छल-छल ,
मिटा न पाती सौम्य मूर्ति अंतस से अपने हा क्षण पल ,
तेरे बिना दु:ख रजनी के , अन्धकार से क्यों न डरूँ मैं !
माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !
मिला तुझे क्या मेरा बचपन अपने हाथों मिटा गयी जो ,
बना सुरक्षित निज प्राणों को मेरी हस्ती मिटा गयी जो ,
माँ, ओ मेरी माँ , तेरी सुधि अंतर से कैसे बिसरूँ मैं !
माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !
देख उदासी हाय कौन दुखिया मन की मनुहार करेगा ,
पा आभास कष्ट का हा अब कौन धीर दे प्यार करेगा ,
माँ को खोकर ओ निर्दय प्रभु नव अभिलाषा कौन करूँ मैं !
माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !

किरण  

18 टिप्‍पणियां:

  1. माँ की लेखनी पर क्या कहूँ , उनको , उनकी भावनाओं को नमन

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  2. माँ के प्यार में निस्वार्थ भाव को समेटती आपकी खुबसूरत रचना.....

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  3. naa maa ka koi saani hai naa maa kee mamta ka..itne barsho baad bhee bahi tajgee..shaswat rachnayein aisee hee hoti hain..yah anvar dhara satat prabahit hoti rahegi..dil ko choo lene wali is rachna ke liye hardik badhayee..

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  4. man ki beti ke prati bhawnaon ko shabdon me baandh pana kam hai aur beti k maa k prati jo ehsaas hote hai kitna bhi unhe shabd-badhh karo kuchh n kuchh baki rah hi jata hai.

    samvedansheel kriti.

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  5. माँ को खोकर ओ निर्दय प्रभु नव अभिलाषा कौन करूँ मैं !
    माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !

    ....बहुत संवेदनशील प्रस्तुति...उत्कृष्ट लेखन को नमन...

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  6. माँ की ममता की कोई सानी नहीं
    |मम्मी को शत शत नमन

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  7. अद्भुत रचना, बार बार पढ़ने योग्य..

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  8. माँ को खोकर ओ निर्दय प्रभु नव अभिलाषा कौन करूँ मैं ! no words to say.....

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  9. मां तो मां है , मां अवर्णनीय है । बहुत सुंदर मनोभावों को उकेरा मां ने । १९५५-५६ की रचना , दुर्लभ रचना से रूबरू कराने का शुक्रिया साधना जी

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  10. बहुत ही अद्भुत रचना
    ममतामयी माँ को नमन!!

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  11. आदरणीय मौसीजी ,सादर नमन ,सर्प्रथम mothers डे पर आपको नमन और शुभकामनायें| जग की रीत के विपरीत और जीवन नियम सभी भावों से परे होतें है |मैंने माँ को खोया जब में २४ साल की थी और इस सत्य को आज तक स्वीकार नहीं पा रही हूँ |आपकी संकलित रचना से इस सत्य को पहचानने की कोशिश करूंगी |

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  13. माँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
    कितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
    आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
    एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
    माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
    इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?

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  14. सत्य को स्वीकारने का प्रयास सुंदर कविता के रूप में.

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  15. पल भर मेरी इन आँखों में आँसू तुझे न भाते थे माँ ,
    उन आँखों में उमड़ सरोवर पल क्षण तुझे बुलाते हैं माँ ,
    हृदय बना पाषाण छिपी जा कैसे तेरी खोज करूँ मैं !
    माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !

    माँ की हर रचना अद्भुत होती है ...बहुत सुंदर भावों को सँजोये सुंदर प्रस्तुति

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  16. भुला न पाती मैं तेरे अंतर का स्नेह सरोवर छल-छल ,
    मिटा न पाती सौम्य मूर्ति अंतस से अपने हा क्षण पल ,
    तेरे बिना दु:ख रजनी के , अन्धकार से क्यों न डरूँ मैं !
    माँ कैसे अब धीर धरूँ मैं !...............

    Outstanding creation..

    .

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