गुरुवार, 8 मार्च 2012

घर की रानी


अपनी माँ की विविध रसों की रचनाएं मैं आपको पढ़वा चुकीहूँ! होली का मस्ती भरा त्यौहार है आज आपको उनकी एक बिलकुल ही नये रसरंग की रचना पढ़वाने जा रही हूँ जो तब भी बहुत लोकप्रिय थी और हर कवि सम्मलेन में इसे सुनाने की फरमाइश उनसे ज़रूर की जाती थी ! इस रचना को उन्होंने जब रचा होगा तब हम सब भाई बहन छोटे-छोटे रहे होंगे ! यह रचना अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है और उस युग की गृहलक्ष्मी के सम्पूर्ण रूप का दिग्दर्शन कराती है ! तो लीजिए आप भी इस शब्द चित्र का आनंद उठाइये !

मैं हूँ अपने घर की रानी !

मेरा छोटा सा राजमहल
सबके महलों से है विचित्र ,
गृहरानी का जिसके अंदर
है छिपा समुज्ज्वल चित्र चरित्र ,
दिन रात व्यवस्था मैं उसकी
करती रहती हूँ मनमानी !

मैं हूँ अपने घर की रानी !

निज सायं प्रात: चौके में
अपना आसन लगवाती हूँ ,
करछी, चिमटा, चकला, बेलन
सबके झगड़े निबटाती हूँ ,
चूल्हे में सुलगा कर ज्वाला
आटे में देती हूँ पानी !

मैं हूँ अपने घर की रानी !

मुन्ना-मुन्नी छोटे-छोटे
दो राजमहल के मंत्री हैं ,
दोनों ऊधम करते रहते
दोनों झगड़ालू तंत्री हैं ,
जब बहुत ऊब जाती उनसे
करती चाँटों से मेहमानी !

मैं हूँ अपने घर की रानी !

जब द्वारबान, चौका पानी
वाला ना कोई आता है ,
तब उसका ही वेश बनाना
मेरे मन को भाता है ,
फिर ऐसा रूप पलटती हूँ
जाती न तनिक भी पहचानी !

मैं हूँ अपने घर की रानी !

पर गृहस्वामी के आते ही
भीगी बिल्ली बन जाती हूँ ,
जो मिलता है आदेश मुझे
चुपचाप वही कर लाती हूँ ,
पर बाहर उनके जाते ही
मैं बन जाती फिर महारानी !

मैं हूँ अपने घर की रानी !

भूले से यदि कोई पुस्तक
मेरे हाथों पड़ जाती है ,
पढ़ती उसको ऐसे झटपट
ज्यों भूखी ग्रास निगलती है ,
उस पुस्तक को मन ने मानों
उदरस्थित करने की ठानी !

मैं हूँ अपने घर की रानी !


किरण

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर!
    प्रस्तुति के लिए आभार!

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  2. बहुत ही सुन्दर, अपने घर में तो हम भी सेवक बनकर रहते हैं।

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति ..... घर की ही रानी समझ ली जाए स्त्री तो क्या बात है ...

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  4. घर की रानी क्यों बने भीगी बिल्ली ...
    सुन्दर कविता !

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  5. कल 10/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. बहुत कोमल भावों से सजी रचना |
    आशा

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  7. महिला का आदरणीय चित्रण ...बहुत सुन्दर

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  8. पहल बार आना हुआ आपकी पोस्ट पर ....सारे घर की बागडोर तो 'घर की रानी 'के हाथों में ही होती है ...वही तो धुरी है...घरकी !! सुन्दर व्याख्या !!!

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  9. बहुत प्यारी रचना साधना जी....
    बहुत ही मस्त-मधुर भाव समेटे हैं माँ ने....

    सादर नमन.

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  10. बहुत सुंदर कविता... भीगी बिल्ली बन जाना भी एक सच्चाई हैः)

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  11. सचमुच अलग अंदाज की रचना... सुन्दर....
    सादर बधाई..

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  12. घर की रानी होना सौभाग्य की बात है ...
    अलग रंग में लिखी रचना ... मज़ा आया बहुत ...

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  13. sach kaha hai aapne...yah shaswat sahitya hai..har jamaane me wahi tajgi..acchi rachna ko padhte hee kavi athwa kaviyatri ke shrsthta ka abhash ho jaata hai..gudgudati hui.prabahit hoti hui ,,,man ko chooti hui...aaur kisi drishya ko shabdon se uker dene ka adbhu samarthya liye ed adbhut rachna...sadarbadhayee aaur amantran ke sath

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  14. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

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  15. खूबसूरत रचना ...माँ को नमन !
    शुभकामनायें आपको !

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