गुरुवार, 5 जनवरी 2012

फूल बनूँ या धूल बनूँ

यह इच्छा है बहुत युगों से
फूल बनूँ या धूल बनूँ ,
तेरे किसी काम आऊँ मैं
अपना जीवन धन्य करूँ !

फूल बनूँ तो देवालय के
किसी वृक्ष से जा चिपटूँ ,
तेरे किसी भक्त द्वारा प्रिय
तेरे चरणों से लिपटूँ !

फूल नहीं तो धूल बनाना
जिस पर भक्त चलें तेरे ,
उनके पावन युगल चरण से
अंग पुनीत बनें मेरे !

किन्तु भाग्य के आगे किसका
वश चलता मेरे भगवन् ,
विधि विडम्बना से यदि मैं बन सकूँ
न पग की भी रज कण !

तो प्रभुवर पूरी करना यह
मेरे मन में बसी उमंग ,
करुणा करके मुझे बनाना
प्रेम सिंधु की तरल तरंग !


किरण


17 टिप्‍पणियां:

  1. फूल नहीं तो धूल बनाना
    जिस पर भक्त चलें तेरे ,
    उनके पावन युगल चरण से
    अंग पुनीत बनें मेरे !
    श्रेष्ठ कामना .......

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  2. तो प्रभुवर पूरी करना यह
    मेरे मन में बसी उमंग ,
    करुणा करके मुझे बनाना
    प्रेम सिंधु की तरल तरंग !

    बेहतरीन।


    सादर

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  3. यह इच्छा है बहुत युगों से
    फूल बनूँ या धूल बनूँ ,
    तेरे किसी काम आऊँ मैं
    अपना जीवन धन्य करूँ !
    बेहतरीन भाव संयोजन है इस प्रस्‍तुति में आभार ।

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  4. adarniya mausiji,sadar vande,aaj ki post aapki jivan darshan karati hae .

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  5. फूल बनूँ तो देवालय के
    किसी वृक्ष से जा चिपटूँ ,
    तेरे किसी भक्त द्वारा प्रिय
    तेरे चरणों से लिपटूँ !
    Kitnee sundar kamana hai!
    Naya saal mubarak ho!

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  6. अद्भुत कल्पना, सुन्दर प्रार्थना।

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  7. करुणा करके मुझे बनाना
    प्रेम सिंधु की तरल तरंग !
    सुन्दर सोच !

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  8. फूल नहीं तो धूल बनाना
    जिस पर भक्त चलें तेरे ,
    उनके पावन युगल चरण से
    अंग पुनीत बनें मेरे !

    बहुत ही प्यारी रचना..

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  9. बहुत सार्थक प्रस्तुति, आभार|

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  10. तेरे किसी काम आऊँ मैं
    अपना जीवन धन्य करूँ !
    बहुत सुन्दर गीत...
    सादर....

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  11. सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....

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  12. भावपूर्ण और सशक्त प्रस्तुति |
    आशा

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  13. आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन के लिए आभार ।

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