शनिवार, 16 अप्रैल 2011

दो तस्वीरें


चित्रकार इक चित्र बनाना !
जिसके एक ओर उजड़ा अति दलित ग्राम दर्शाना !
चित्रकार इक चित्र बनाना !

टूटे-फूटे गृह हों न्यारे ,
झुलसे खेत वृक्ष हों सारे ,
अग्नी का साम्राज्य वहाँ हो ,
सर्वनाश का राज्य वहाँ हो ,
भूखे नन्हे बच्चों का हा "माँ-माँ" कह चिल्लाना !
चित्रकार इक चित्र बनाना !

दुखी कृषक बैठे मन मारे ,
क्षुधित प्राण दुर्बल बेचारे ,
कृषक पत्नियाँ भी बैठी हों ,
नयन नीर नदियाँ बहती हों ,
मानों आई देह धार कर करुणा ही दिखलाना !
चित्रकार इक चित्र बनाना !

दूजी ओर फिर यह दर्शाना ,
सुन्दर मंदिर एक सजाना ,
चारों ओर अग्नि हो जलती ,
मानों दूजा मंदिर ढलती ,
उसके भीतर प्रलयंकारी महाशक्ति बिठलाना !
चित्रकार इक चित्र बनाना !

नयनों से हो अग्नि उगलती ,
अट्टहास कर मानों हँसती ,
दन्तपंक्ति विद्युत सम शोभित ,
मुण्डमाल हिय पर हो दर्शित,
साड़ी लाल, रुधिर से लथपथ सारी देह दिखाना !
चित्रकार इक चित्र बनाना !

एक हाथ दलितों के ऊपर ,
दूजे कर में हो कृपाण खर ,
अभयदान दीनों को देती ,
अन्यायी को भय से भरती ,
तेज पराक्रम का अखण्ड साम्राज्य वहाँ दर्शाना !
चित्रकार इक चित्र बनाना !


किरण

चित्र गूगल से साभार !

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चित्रण किया है।

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  2. दोनों ही चित्र विषमताओं से परिपूर्ण हैं..

    अद्भुत रचना..!!

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  3. अप्रतिम रचना....जैसे चित्रकारों को चुनौती दे रही हों, पंक्तियाँ

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  4. अब क्या कहे? शव्द ही गायब हो गये दोनो चित्रो को देख कर...

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  5. दोनों चित्रों के बिम्ब अद्भुत हैं ....नि:शब्द हो गयी हूँ इस रचना को पढ़ कर ...

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  6. चित्रकार के लिए भी कितना मुश्किल होगा ...
    स्तब्धकारी रचना !

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  7. अद्भुत रचना..!!
    बहुत सुन्दर चित्रण

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  8. आपकी माता जी।
    श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना किरण की रचनाएँ मुझे बहुत पसंद है।
    आपने उनकी बेहतरीन रचना प्रस्तुत की है।

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  9. दूजी ओर फिर यह दर्शाना ,
    सुन्दर मंदिर एक सजाना ,
    चारों ओर अग्नि हो जलती ,
    मानों दूजा मंदिर ढलती ,
    उसके भीतर प्रलयंकारी महाशक्ति बिठलाना !
    चित्रकार इक चित्र बनाना !

    इस सोच और सृजन को मेरा नमन ....।

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