शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

मेरे भाव

मेरे इस सूने जीवन में
शरद पूर्णिमा बन आये तुम ,
अमा रात्रि से अंधकार में
पूर्ण चंद्र के छाये तुम !

उजड़ चुकी थी जब पतझड़ में
इस उपवन की सब हरियाली ,
सरस सरल मधुऋतु समान
आकर इसमें हो सरसाये तुम !

जब रोती सूनी निदाध में
विकल टिटहरी तड़प-तड़प कर ,
तब वर्षा के सघन मेघ बन
उसे रिझाने हो आये तुम !

विरह व्यथित चकवी निराश हो
जब जीवन आशा बिसराती ,
प्रथम किरण सी आस ज्योति ले
धैर्य बँधाने हो आये तुम !

तुम मेरे सुख दुःख के साथी
मेरे अरमानों की प्रतिलिपि
मुझे तोष है दुःख वारिधि में
कविता नौका ले आये तुम !

किरण

19 टिप्‍पणियां:

  1. " तुम मेरे सुख दुःख के साथी ------कविता नौका ले आए तुम "
    बहुत अच्छे भाव और रचना|
    आशा

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  2. श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना की सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद!

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  3. तुम मेरे सुख दुःख के साथी
    मेरे अरमानों की प्रतिलिपि
    मुझे तोष है दुःख वारिधि में
    कविता नौका ले आये तुम !

    बहुत सुंदर भाव -
    अनुपम रचना -

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  4. सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद!

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  5. तुम मेरे सुख दुःख के साथी
    मेरे अरमानों की प्रतिलिपि
    मुझे तोष है दुःख वारिधि में
    कविता नौका ले आये तुम !
    भावो का सुन्दर समन्वय्।

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  6. मेरे अरमानों की प्रतिलिपि
    मुझे तोष है दुःख वारिधि में
    कविता नौका ले आये तुम !

    बड़ी ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं....सुन्दर सी कविता .

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  7. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  8. उजड़ चुकी थी जब पतझड़ में
    इस उपवन की सब हरियाली ,
    सरस सरल मधुऋतु समान
    आकर इसमें हो सरसाये तुम !
    बहुत सुंदर भाव सुन्दर कविता.......

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  9. तुम मेरे सुख दुःख के साथी
    मेरे अरमानों की प्रतिलिपि
    मुझे तोष है दुःख वारिधि में
    कविता नौका ले आये तुम !
    अति सुंदर भाव जी, धन्यवाद

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  10. भावपूर्ण.... अंतर्मन के सुंदर भाव.....

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  11. कविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई।

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  12. एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...

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  13. खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  14. बहुत सुन्दर भावों से भरी खूबसूरत रचना ..

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  15. bhaav bAHUT SUNDAR HAI.........................MAHADEVI VERMA KI TARAH..........................BAHUT ACCHA

    एक निवेदन-
    मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

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  16. बहुत ही सुन्‍दर भावमय प्रस्‍तुति ।

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  17. तुम मेरे सुख दुःख के साथी
    मेरे अरमानों की प्रतिलिपि
    ...सुन्दर भावों से भरी खूबसूरत रचना

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  18. सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद!

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