गुरुवार, 16 सितंबर 2010

* नाव न रोको *

साथी मेरी नाव न रोको !

चली जा रही अपने पथ पर
डग-मग बहती हिलती डुलती,
इस चंचल उत्फुल्ल सरित पर
इठलाती कुछ गाती चलती,

मेरी मंजिल दूर, देव मुझको
जाने दो, अब मत रोको !
साथी मेरी नाव न रोको !

सह न सकेगा यह उर यह सुख
हर न सकेगा प्राणों का दुःख,
मेरे जीवन के पथ पर सम
कैसा दुःख और कैसा प्रिय सुख,

मेरी अमर अश्रुओं की निधि
मत छीनो, मुझको मत रोको !
साथी मेरी नाव न रोको !

मैं बहती हूँ , बहने दो प्रिय
मैं सहती हूँ, सहने दो प्रिय,
मेरी भग्न हृदय कुटिया को
यदि सूना तुम छोड़ सको प्रिय,

तो जाओ, आबाद रहो तुम
मेरा शाश्वत पंथ न रोको !
साथी मेरी नाव न रोको !

किरण

16 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी अमर अश्रुओं की निधि
    मत छीनो, मुझको मत रोको !
    साथी मेरी नाव न रोको !
    साधना जी सही बात है कभी कभी इन आँसूओं से रिश्ता बनाना बहुत सकून देता है। बहुत अच्छी भावमय रचना है। शुभकामनायें।

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  2. ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

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  3. साधना जी सही बात है
    निराला अंदाज है....... आनंद आया पढ़कर.

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  4. सह न सकेगा यह उर यह सुख
    हर न सकेगा प्राणों का दुःख,
    मेरे जीवन के पथ पर सम
    कैसा दुःख और कैसा प्रिय सुख,

    बहुत उम्दा रचना

    http://veenakesur.blogspot.com/

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  5. मनोभावों से ओतप्रोत कविता बहुत सुंदर |
    आशा

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  6. मनोभावों का सुन्दर चित्रण्।

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  7. श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना "किरण" जी की सुन्दर रचना
    पढ़वाने के लिए आभार!
    --
    आज दो दिन बाद नेट सही हो पाया है!
    --
    शाम तक सभी के ब्लॉग पर
    हाजिरी लगाने का इरादा है!

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  8. मैं बहती हूँ , बहने दो प्रिय
    मैं सहती हूँ, सहने दो प्रिय,
    मेरी भग्न हृदय कुटिया को
    यदि सूना तुम छोड़ सको प्रिय,

    तो जाओ, आबाद रहो तुम
    मेरा शाश्वत पंथ न रोको !
    साथी मेरी नाव न रोको !

    कितनी तड़प है इन पंक्तियों में ....एक एक शब्द मन पर असर कर्ता है ....बहुत भाव भीनी कविता

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  9. सह न सकेगा यह उर यह सुख
    हर न सकेगा प्राणों का दुःख,
    मेरे जीवन के पथ पर सम
    कैसा दुःख और कैसा प्रिय सुख,
    पंत जी की याद आ गई! मैं नहीं चाहता चिर सुख, मैं नहीं चाहता चिर दुख।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  10. आपकी कविताओं में महान कवयित्री महादेवी वर्मा जैसा तेज है . अति सुंदर भावाव्यक्ति !

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  11. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण गीत|
    बहुत बहुत धन्यवाद|
    ब्रह्माण्ड

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  12. अकविता के दौर में बड़े दिनों बाद पद्य के रस-गुणों, व्याकरण आदि को समर्पित कविता पढ़ी।

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