रविवार, 13 जून 2010

ज्योतिकण

कौन के अरमान नभ में ज्योतिकण बन छा रहे हैं !

कौन सी वह है सुहागन देव का जो ध्यान धरती,
गगन गंगा में पिया हित दीप का जो दान करती,
छूट कर उसके करों से जो उमड़ते आ रहे हैं !
कौन के अरमान नभ में ज्योतिकण बन छा रहे हैं !

आज किसने गा दिया है राग दीपक मधुर स्वर भर,
जल गए जो स्वर्ग के दीपक सलोने सभी चुन कर,
चमचमाते नील प्रांगण में सभी को भा रहे हैं !
कौन के अरमान नभ में ज्योतिकण बन छा रहे हैं !

कौन दीपावलि सजा कर कर रहे हैं ध्यान किसका,
कौन सी वह लक्ष्मी है कर रहे आह्वान जिसका,
इस अमा की रात्रि में जो शून्य जग चमका रहे हैं !
कौन के अरमान नभ में ज्योतिकण बन छा रहे हैं !

कौन सी दुखिया बहाती नयन से अविराम मोती,
चन्द्र की छा प्रभा जिन पर भर रही है अमर ज्योति,
किस अभागन के ह्रदय के घाव ये दिखला रहे हैं !
कौन के अरमान नभ में ज्योतिकण बन छा रहे हैं !

चाँदनी के नयन मुक्ता हैं धरा के घाव उर के,
साँध्य सुंदरि दीप धरती शशि रमा का ध्यान धरते,
वे नियंता चतुर गायक राग दीपक गा रहे हैं !
कौन के अरमान नभ में ज्योतिकण बन छा रहे हैं !

किरण

7 टिप्‍पणियां:

  1. आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!

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  2. बहुत सुंदर अभिब्यक्ति |
    आशा

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  3. साधना जी , आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,

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  4. साधना जी कैसा लग रहा है अमेरिका मे अरे आपने तो जाते ही लिखना शुरू कर दिया ? मेरे दिमाग से तो वहाँ जा कर सब शब्द खो गये थे। रचना बहुत सुन्दर है क्या अजित गुप्ता जी से बात हुयी? कैलिफोर्निया मे एक और ब्लागर मीट की प्रतीक्षा मे हूँ । आप उनसे संपर्क साध कर कवि सम्मेलन करें । रचना हमेशा की तरह बहुत सुन्दर है। काश कि मेरे अमेरिका मे होते हुये आप आयी होती तो बहुत मज़ा आता। शुभकामनायें

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  5. निर्मलाजी, मैं अमेरिका सकुशल पहुँच गयी ! अजीत गुप्ताजी से अभी संपर्क नहीं हो पाया है ! मैं भी उनसे मिलने के लिए बहुत उत्सुक हूँ ! जल्दी ही उनसे फोन पर बात करूंगी ! आपने रचना को सराहा उसके लिए आभारी हूँ ! 'उन्मना' में प्रकाशित सारी रचनाएँ मेरी माँ श्रीमती ज्ञानवती जी के द्वारा रचित हैं ! वे 'किरण' के उपनाम से लिखती थीं ! यहाँ आकर अभी मैं भी प्रकतिस्थ नहीं हो पाई हूँ ! लेकिन वादा है जल्दी ही आपको 'सुधीनामा' पर कुछ नया दिखाई देगा ! रचना की सराहना के लिए धन्यवाद !

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