गुरुवार, 17 जून 2010

आज मुझे जी भर रोने दो

आज मुझे जी भर रोने दो !

बीते मधुर क्षणों को मुझको
विस्मृति सागर में खोने दो ,
आज मुझे जी भर रोने दो !

छुओ न उर के दुखते छाले,
मेरी साधों के हैं पाले,
बढ़ने दो प्रतिपल पर पीड़ा
उसमें स्मृतियाँ खोने दो !

आज मुझे जी भर रोने दो !

मत छीनो मेरी उर वीणा,
भर देगी प्राणों में पीड़ा,
अश्रु कणों के निर्मल मुक्ता
आह सूत्र में पो लेने दो !

आज मुझे जी भर रोने दो !

स्मृति मुझसे रूठ गयी है,
और सुषुप्ति राख हुई है,
विगत दिवस हैं स्वप्न, मुझे
स्वप्नों की रजनी में सोने दो !

आज मुझे जी भर रोने दो !

रहे अमर आँखों का पानी,
मैं , मेरी दुनिया दीवानी,
दीवानों को अपनी दुनिया
में दीवाना ही रहने दो !

आज मुझे जी भर रोने दो !


किरण

13 टिप्‍पणियां:

  1. रहे अमर आँखों का पानी,
    मैं , मेरी दुनिया दीवानी,

    बहुत खूब - अच्छे भाव की रचना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. बेहतरीन..सुन्दर व सशक्त कविता...शुभकामनाएं।

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  3. रहे अमर आँखों का पानी,
    मैं , मेरी दुनिया दीवानी,
    दीवानों को अपनी दुनिया
    में दीवाना ही रहने दो !

    waah mam bahut sundar rachna hai...

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  4. "छुओ न उर के दुखते छालों को ,
    मेरी साधों के हें पाले " बहुत सुंदर भाव |
    आशा

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  5. सुन्दर भावों से सजी खूबसूरत रचना...

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  6. दीवानों को अपनी दुनिया
    में दीवाना ही रहने दो !
    सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  7. रहे अमर आँखों का पानी,
    मैं , मेरी दुनिया दीवानी,
    दीवानों को अपनी दुनिया
    में दीवाना ही रहने दो !
    बहुत सुन्दर.

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  8. हे अमर आँखों का पानी,
    मैं , मेरी दुनिया दीवानी,
    दीवानों को अपनी दुनिया
    में दीवाना ही रहने दो !

    आज मुझे जी भर रोने दो !
    बहुत सुन्दर गीत है किरेअण जी को बधाई । कैसा लग रहा है अमेरिका?

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  9. छुओ न उर के दुखते छाले,
    मेरी साधों के हैं पाले,
    बढ़ने दो प्रतिपल पर पीड़ा
    उसमें स्मृतियाँ खोने दो !
    बहुत ही गहरे भाव लिए है कविता...मन की पीड़ा को सुन्दर शब्दों में बाँधा है..

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