रविवार, 25 अप्रैल 2010

अनुभूति

सोच रहा मेरा पागल मन !
कौन शक्ति दुनिया में
जिससे है इतना भारी अपनापन !
सोच रहा मेरा पागल मन !

है सुख क्या दुःख कौन वस्तु है,
है अथवा यह सब केवल भ्रम,
क्या इस जीवन में सुख दुःख का
चलता ही रहता है यह क्रम,
क्यों नैराश्य है दुःख का सूचक,
क्यों है आशा ही में जीवन !
सोच रहा मेरा पागल मन !

अपने ही जीवन पर अपना
क्यों रहता अधिपत्य नहीं है,
मृत्यु बता जाती जो आकर
कुछ तेरा अस्तित्व नहीं है
है जीवन का सार अरे क्या
बस केवल चिंता औ चिंतन !
सोच रहा मेरा पागल मन !

पीड़ाओं का सागर है या
है अवसादों का साम्राज्य,
है क्या यह संसार चक्र जो
नहीं समझ में आता आज,
मृगतृष्णा सी इस माया में
फँस कर भटक रहा चंचल मन !
सोच रहा मेरा पागल मन !

किरण

12 टिप्‍पणियां:

  1. फँस कर भटक रहा चंचल मन !
    सोच रहा मेरा पागल मन !
    .......bhaut hi sunder

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  2. ब्लौगर बंधु, हिंदी में हजारों ब्लौग बन चुके हैं और एग्रीगेटरों द्वारा रोज़ सैकड़ों पोस्टें दिखाई जा रही हैं. लेकिन इनमें से कितनी पोस्टें वाकई पढने लायक हैं?
    हिंदीब्लौगजगत हिंदी के अच्छे ब्लौगों की उत्तम प्रविष्टियों को एक स्थान पर बिना किसी पसंद-नापसंद के संकलित करने का एक मानवीय प्रयास है.
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    कृपया हिंदीब्लौगजगत को एक बार ज़रूर देखें : http://hindiblogjagat.blogspot.com/

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  3. "केवल चिंता और चिंतन " अदभुद विचार और भावात्मक अभिब्यक्ति |
    आशा

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  4. अपने ही जीवन पर अपना
    क्यों रहता अधिपत्य नहीं है,
    मृत्यु बता जाती जो आकर
    कुछ तेरा अस्तित्व नहीं है
    zindagi ka sach....

    जवाब देंहटाएं
  5. चलता ही रहता है यह क्रम,
    क्यों नैराश्य है दुःख का सूचक,
    क्यों है आशा ही में जीवन !
    सोच रहा मेरा पागल मन !
    आपकी रचना पढ़कर हाई स्कूल में पढ़ी ये पंक्तियों याद आयी हैं ..
    आशा भी कितने सुन्दर होती है
    जो जीने को कहती है
    प्राण हर लेती हैं
    फिर भी चाह बनी रहती है
    ..... वास्तव में आशा ही तो जो निराशा में भी हमें आशावान बने रहने को कहती है ..
    जीवन के यथार्थ से परिपूर्ण रचना ..
    हार्दिक शुभकामनाएँ

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  6. अत्यंत खूबसूरत प्रस्तुति। आपकी रचना को कल के चर्चा मंच मे शामिल कर लिया गया है।

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  7. पीड़ाओं का सागर है या
    है अवसादों का साम्राज्य,
    है क्या यह संसार चक्र जो
    नहीं समझ में आता आज,
    मृगतृष्णा सी इस माया में
    फँस कर भटक रहा चंचल मन !
    सोच रहा मेरा पागल मन !
    Koyi samajha nahi koyi jana nahi..behad sundar prastuti hai aapki..

    जवाब देंहटाएं
  8. hriday ko choonewali atyant sunder rachna.aap 'basant-malti' men neeche jaker comment box men likh sakti hain.

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  9. ...है जीवन का सार अरे क्या
    बस केवल चिंता औ चिंतन ! ...

    Mental conflicts are beautifully expressed. Chinta aur Chintan are indeed the essence of life.

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