शनिवार, 17 अप्रैल 2010

आज वारिद रो रहे हैं

आज वारिद रो रहे हैं !
कुटिल जग की कालिमा निज अश्रुजल से धो रहे हैं !
आज वारिद रो रहे हैं !

देख कर संतप्त भू को पाप ज्वाला में सुलगते,
ह्रदय की सद्भावनाएँ वासनाओं में बदलते,
विकल होकर आज अपने धैर्य से च्युत हो रहे हैं !
आज वारिद रो रहे हैं !

ध्वंस लीला नीतियों की बढ़ रही जो आज भू पर,
देख ताण्डव नृत्य अत्याचार का सब लोक ऊपर,
स्वयं होकर दुखित अपना आज आपा खो रहे हैं !
आज वारिद रो रहे हैं !

बिलखते सुकुमार बालक कर रहे उनको विकल अति,
पीड़ितों की अश्रुधारा रुद्ध करती प्राण की गति,
सांत्वना के हेतु करूणा जल निरंतर ढो रहे हैं !
आज वारिद रो रहे हैं !

किरण

9 टिप्‍पणियां:

  1. अत्यंत सजीव चित्त्रण प्रस्तुत किया है

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  2. बिलखते सुकुमार बालक कर रहे उनको विकल अति,
    पीड़ितों की अश्रुधारा रुद्ध करती प्राण की गति,
    सांत्वना के हेतु करूणा जल निरंतर ढो रहे हैं !
    आज वारिद रो रहे हैं !
    Behad sundar rachanase ru-b-ru karaya aapne!

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  3. 'आज वारिद रो रहे हैं'पढ़ कर
    हृदय संतुष्टि और आनंद से भर गया ।
    मां सरस्वती की कृपा से ही श्रेष्ठ सृजन संभव होता है,और सरस्वती की कृपा निर्मल निश्छल आत्मा वालों को ही प्राप्त होती है ।
    आज के साहित्य की दुर्गत के कारणों को समझा जा सकता है ।
    पुनः पवित्र लेखनी को प्रणाम !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    Blog : http://shabdswarrang.blogspot.com

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  4. बहुत सुंदर भाव लिए कविता |
    आशा

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  5. ध्वंस लीला नीतियों की बढ़ रही जो आज भू पर,
    देख ताण्डव नृत्य अत्याचार का सब लोक ऊपर,
    स्वयं होकर दुखित अपना आज आपा खो रहे हैं !
    आज वारिद रो रहे हैं !

    वाह !! बहुत खूब !!
    बहुत सुन्दर रचना ||

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