सोमवार, 29 मार्च 2010

मनोव्यथा

मन चलो एकांत में
सुख शान्ति से जीवन बिताने,
दु:ख कुछ जग का भुलाने,
आग कुछ उर की बुझाने !

हँस रहा जग देख तुझको
रुक न पल भर भी दिवाने,
बस चला चल राह अपनी
इक नयी दुनिया बसाने !

शून्य में चल गगन को
कुछ दु:खमयी ताने सुनाने,
व्यंग से कुचले ह्रदय के
भाव कुछ उसको दिखाने !

छोड़ दे ये मित्र सारे
हो चुके जो अब बेगाने,
शून्य से कर मित्रता
नैराश्य को आशा बनाने !

भार तू जग को अरे
अब रह न यों उसको दुखाने,
छोड़ मिथ्या मोह को रे
तोड़ दे बंधन पुराने !

क्षितिज के उस पार जा छिप
बैठ कर आँसू बहा ले,
निठुर जग की ज्वाल से रे
यह दुखी जीवन बचा ले !

किरण

10 टिप्‍पणियां:

  1. क्षितिज के उस पार जा छिप
    बैठ कर आँसू बहा ले,
    निठुर जग की ज्वाल से रे

    sateek rachnaa.......

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  2. अद्भुत। जिन्दगी का असली अर्थ छुपा है विचारों में।

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  3. मनोव्यथा का अतिसुन्दर चित्रण | पढ़ कर बहुत शांती का अनुभव
    होता है |
    आशा

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  4. भार तू जग को अरे
    अब रह न यों उसको दुखाने,
    छोड़ मिथ्या मोह को रे
    तोड़ दे बंधन पुराने !
    ...बेहतरीन रचना.यही जिंदगी का फलसफा है.

    ________________
    शब्द शिखर पर- "भूकम्प का पहला अनुभव"

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  5. भार तू जग को अरे
    अब रह न यों उसको दुखाने,
    छोड़ मिथ्या मोह को रे
    तोड़ दे बंधन पुराने

    बेहतरीन.

    सादर

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  6. भार तू जग को अरे
    अब रह न यों उसको दुखाने,
    छोड़ मिथ्या मोह को रे
    तोड़ दे बंधन पुराने !

    किरणजी की हर रचना मन के अंदर तक पहुंचती है ...

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  7. हँस रहा जग देख तुझको
    रुक न पल भर भी दिवाने,
    बस चला चल राह अपनी
    इक नयी दुनिया बसाने !
    sunder bhav prabal rachna ..!!

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  8. भार तू जग को अरे
    अब रह न यों उसको दुखाने,
    छोड़ मिथ्या मोह को रे
    तोड़ दे बंधन पुराने
    मनोव्यथा का अतिसुन्दर चित्रण .....

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