शुक्रवार, 12 मार्च 2010

वेदना के गीत

वेदना के राग गाने को मिले स्वर साधना के ,
गीत तेरी वन्दना के मीत कैसे गा सकूंगी !

यामिनी ने फूल की सेजें बिछाईं
पा उपेक्षा चाँद की मुरझा गयी हैं ,
चाँदनी ने हर्ष की मणियाँ लुटाईं
ओस बन सारी धरा पर छा गयी हैं !
इस अमावस की अंधेरी रात में ओ रे अपरिचित
पंथ तेरे द्वार आने का कहाँ से पा सकूँगी !
गीत कैसे गा सकूँगी !

कामना की अनखिली कलियाँ लुटा कर
विरस पतझड़ में अकेली मैं खड़ी हूँ ,
देख कर विश्वास का मृगजल सुहाना
अधर सूखे तृप्त करने को अड़ी हूँ !
ले गयी हैं छीन कर मुस्कान पौधों की बहारें
फूल तेरी अर्चना को मैं कहाँ से पा सकूँगी !
गीत कैसे गा सकूँगी !

किरण

6 टिप्‍पणियां:

  1. यामिनी ने फूल की सेजें बिछाईं
    पा उपेक्षा चाँद की मुरझा गयी हैं ,
    चाँदनी ने हर्ष की मणियाँ लुटाईं
    ओस बन सारी धरा पर छा गयी हैं !
    इस अमावस की अंधेरी रात में ओ रे अपरिचित
    पंथ तेरे द्वार आने का कहाँ से पा सकूँगी !
    गीत कैसे गा सकूँगी ! adbhut

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  2. अपूर्व कल्पना |बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति |
    आशा

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  3. वाह!! बेहतरीन बिम्बों के साथ अद्भुत शिल्प!

    कामना की अनखिली कलियाँ लुटा कर
    विरस पतझड़ में अकेली मैं खड़ी हूँ ,
    देख कर विश्वास का मृगजल सुहाना
    अधर सूखे तृप्त करने को अड़ी हूँ !

    माता जी को प्रणाम एवं बधाई!!

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  4. कामना की अनखिली कलियाँ लुटा कर
    विरस पतझड़ में अकेली मैं खड़ी हूँ ,
    देख कर विश्वास का मृगजल सुहाना
    अधर सूखे तृप्त करने को अड़ी हूँ !
    ले गयी हैं छीन कर मुस्कान पौधों की बहारें
    फूल तेरी अर्चना को मैं कहाँ से पा सकूँगी !
    गीत कैसे गा सकूँगी !
    बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है। अच्छी लगी।शुभकामनायें

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  5. लगा जैसे सुमित्रानन्दन पंत गीतांजलि रच रहे हों।

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